ईश्वर कौन है?

इस अखिल विश्व में अनगिनत प्राणी है, उनमें सर्वोत्तम प्राणी मनुष्य है! परमेश्वर ने सारी सृष्टि को मानव सेवा के लिए बनाया है! परन्तु मनुष्य को इश्वर ने केवल अपनी अनन्यभक्ति एवं आराधना के लिए पैदा किया है!

मनुष्य और दूसरे प्राणियों में मुख्य अंतर केवल विवेकपूर्ण ज्ञान है! इश्वर ने इंसान को सर्वोच्तम पद से इसीलिए सम्मानित किया है ताकि: 

  • वह अपने विवेक का प्रयोग करे और ब्रह्माण्ड में फैली उसकी रचनाओं को देखे और उस ईश्वर को बिना देखे हुए पहचाने!
  • उसके वास्तविक गुणों से उस ईश्वर को जाने!
  • केवल उस ईश्वर की ही अनन्यभक्ति एवं उपासना करे और उसके साथ व्यभिचार भक्ति कदापि न करे यानी उसका किसी को सहयोगी न बनाए! 
ईश्वर के वास्तविक संकल्पना को जानने के लिए धार्मिकग्रन्ध ही प्रामाणिक साधन है! 

क्या इश्वर एक है या अनेक?

अगर हम अपने मन से पूछते है, तो उत्तर क्या मिलता है? एक है या अनेक है? हर जीव एक ही माँ के पेट से पैदा होता है! सबका बाप केवल एक ही होता है और किसी का मुखिया भी केवल एक ही होता है! इन सबका अनेक होना असंभव है! इसी प्रकार से सारे संसार का बनाने वाला, पलने वाला और मारने वाला ईश्वर भी एक और अकेला है, अनेक कदापि नहीं है! ताभी तो संसार की सारी व्यवस्था अतिउत्तम ढंग से चल रही है! थोड़ा दिल से सोचिये! यदि ईश्वर अनेक होते तो क्या यह विश्वव्यवस्था सही ढंग से चल सकती? कदापि नहीं! 
सारे धर्मग्रंध यह विश्वास दिलाते है की ईश्वर केवल एक और अकेला है! 
(ऋगवेद; 1:7:9) "य एकश्चर्षणीनां वसूनाम इर् ज्यति इन्द्रः पंचक्षिणीताम !!"
"धरती के बस्ने वाले सरे मनुष्यो का एक और अकेला ईश्वर ही सबको सुख-शान्ति देता है!

(ऋगवेद; 1:84:7) "य एक इद्विद्य्ते वसु मर्ताय दाशुषे"
"जो धरती के सारे मनुष्यो को बहुत प्रकार से देता है, वह एक और अकेला ही दाता-विधाता है!

(ऋगवेद; 6:45:16)  "य एक इत्तमुश्तुही: कृष्टीनां विचषीणे:! पति: जज्ञे" 
"जो ईश्वर एक और अकेला ही है, तू केवल उसी की स्तुति वंदना एवं अनन्यभक्ति कर!"

(ऋगवेद; 6:36:4) "पति: बभूयासमो जनानामेको विश्वस्य भुवनस्य राजा!" 
"इस सारे ब्रह्माण्ड का मालिक केवल एक और अकेला है!" 

(ऋगवेद; 10:81:3) "धावा भूमि जनयन देव एकः" 
"आकाश और धरती का रचयिता केवल एक है!"

(ऋगवेद; 8:1:27) "य एको अस्ति दंसना महाँ उग्रो अभि व्रतै" 
  
"वह केवल एक है जो अपनी अद्भुत क्रियाओं और दृढ़संकल्प से महान एवं सर्वशक्तिमान है!"

(स्वेताश्वतरोपनिषद्; 3:2) "एकोहीरुद्रो न द्वितियाय तस्थुः!"

"ईश्वर रूद्र केवल एक और अकेला है, उसके अलावा दुसरे केलिए कोई आधार नहीं है!"
 
(छान्दोग्य उपनिषद्; 6:2:1) "एकम एवद्वितीमस्ति!!"

"ईश्वर एक और अकेला ही है, दूसरा कोई ईश्वर नहीं है!"


(एतेर्य उपनिषद्; 1:1)  "ॐ आत्मा वा इदमेक एवाग्र आसीतू !"

"ब्रह्माण्ड के आरम्भ में केवल एक ईश्वर ही था, उसके अतिरिक्त कोई जीवन नहीं था!" 

(कठोपनिषद्; 2:1:11)  "एकं ब्रह्म द्वितीय नास्ति, नेह नानास्ति किन्चन"

ईश्वर एक है, दूसरा नहीं है, अंश मात्र भी नहीं है!" -इसे ब्रह्म सूत्र कहते है!

*केवल उस ईश्वर ही की उपासना करें*

(ऋगवेद; 8:1:1)  "मा चिद अन्यत् विशंसत सखायो मा रिशंयत"

हे मेरे मित्रों! एक ईश्वर के अलावा किसी दूसरे की पूजा-उपासना करके अपने आपको तबाह-बरबाद न करो!


(अथर्व वेद2:2:1)  "भुवनस्य यः पतिएक एव नमस्यः विक्षु ईड्यः!"

"वह केवल एक है जो सारे संसार का एक और अकेला स्वामी है, वाही सारी सृष्टि का आराध्य है!"

(बैबिल, यिरमिया; 10:10:)  "यहोवा वास्तव में परमेश्वर है, जीवित परमेश्वर और सदा का राजा वाही है!"

(खुर'आन ; 2:163) "तुम्हारा ईश्वर एक ही ईश्वर है, उस महाद्यवान सतत कृपाशील के अतिरिक्त कोई दूसरा ईश्वर कदापि नहीं है!"

(खुर'आन; 112:1)  "कहो! वह अल्लाह एक और अकेला ही है!"


*क्या ईश्वर जन्म लेता है?*

जो ईश्वर सारी सृष्टि का कर्ता है वह स्वयं एक सृष्टिराशि बनकर इस सृष्टि में कैसे आ सकता है?

(ऋगवेद; 1:67:3)  "अजो न क्षां दाधार पृथिवीं तस्तम्भ धां मंत्रेभीः सत्यैः" 

"निराकार अजन्मा परमेश्वर धरती-आकाश को और जो कुछ उन दोनों के बीच में है, उन सबको सत्यविचारों के साथ संभाले हुए है!"

(ऋगवेद; 7:35:13)  "शं नो अज एक पाद्वो अस्तु!" 

"वह जो अजन्मा है, हमें सुख-शान्ति प्रदान करे!"

(यजुर्वेद; 40:8) "स पर्यागात शुक्रम् अब्रणम् अर्नावीरं शुद्धम् अपापविद्धम्"

"वह परमेश्वर अपने ज्ञानरूप से सर्वत्र विधमान, शीघ्रकारी, सर्वशक्तिमान, निराकार अजन्मा, नस-नाड़ी रहित, पवित्र और निष्पाप है!"

(अथर्व वेद; 13:4:16)  "न द्वितियो न तृतीयशच्यते! न पञ्चमो न षष्ठः सप्तमो नाषयुच्यते! नाष्टमो न नवमो दशमो नाश्युच्यते! य एतं देवमेकवृतं वेद!"

"न कोई दूसरा ईश्वर है, न तीसरा और न चौथा कहा गया है! न कोई पांचवां ईश्वर है, न छठा और न ही किसी सातवें का उल्लेख है! न कोई आठवाँ ईश्वर है, न नौवें और न ही कोई दसवाँ कथित है!"

(श्वेतश्वतरोपनिषद्; 4:5) "अजाम एकाम"

"ईश्वर एक और अजन्मा है"

(श्वेतश्वतरोपनिषद्; 6:9) "न चास्य कश्चिज्जनिता न चाधिपः"

"न तो उसको कोई पैदा करने वाला है और न ही उसका कोई प्रभु है" 

परमेश्वर ने अर्जुन से श्री कृष्ण के माध्यम से कहा:

(भगवद गीता; 7:24)  "अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामवुद्धयः ! परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम्"

"अर्थात मेरे अतिउत्तम, अविनाशी और परम भाव को न जानते हुए, मुझ न दिखाई देनेवाले पावन परमेश्वर को बुद्धिहीन लोग मनुष्य रूप प्राप्त किया हुआ मानते है"

(बैबिल; 23:19) "ईश्वर मनुष्य नहीं, के झूट बोले, और न वह आदमी है, की अपनी इच्छा बदले, क्या जो कुछ उसने कहा उसे न करे? क्या वह वचन देकर उसे पूरा ज करे?"

(खुर'आन; 112:3)  "न तो कोई उसकी संतान है, और न वह किसी की संतान है" 

*क्या ईश्वर दिखाई देता है?

(यजुर्वेद; 32:2) "नैनमुधर्वम न तीयञ्चम न मध्ये परी जग्रभत"

"वह परमेश्वर ऊपर से, निचे से, बीच से, इधर-उधर से किसी भी तरह किसी के पकड़ में या आधीन में नहीं आ सकता है! जब पकड़ में नहीं आ सकता है तो दिखाई कैसे दे सकता है" 

(श्वेतश्वतरोपनिषद्; 4:20) "न सांद्रसे तिष्ठति रूपमस्य! न चक्षुषा पश्यति कश्चनैनम्" 

"इस परमेश्वर का स्वरूप-रंग आँखों के सामने नहीं ठहर सकता है और न कोई माथे की इन आँखों से उसको देख ही सकता है!" 

(केन उपनिषद्; 1:6) "यच्चक्षुषा न पश्यति येन चक्षुषीं पश्यति! तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते"

"जिसको इन आँखों से देखा नहीं जा सकता है, बल्कि जिसकी महान शक्ति से आँखें देखती है, तू उसको ही परमेश्वर जान और एक उसे की पूजा-भक्ति कर, न की उसके अलावा किसी दूसरे की, जो इन आँखों से दिखाई देता हो" 

(मुण्डकोपनिषद; 1:1:6) "यत्तत् अद्रेश्यम अग्राह्त्य्म अगोत्रम् अवर्णम्! अचक्षुः श्रोतं तद् अपाणिपादम्!"

"उसे ज्ञानेन्द्रियों और कमेंद्रियों से देखा और पाणूंचा नहीं जा सकता"


(मुण्डकोपनिषद; 3:1:8) "न चक्षुषा गृह्यते नापि वाचा ज्ञानप्रसादेन पश्यते।" 

"परमेश्वर न तो इन आँखों से प्राप्त किया जा सकता है और न वाणी से, बल्कि ज्ञान से देखा जा सकता है।" 

(बैबल, यूहन्ना; 5:37) "आप लोगों ने उसका वचन कभी सुना और न तुमने उसका रूप ही देखा है।"

(खुर'आन; 6:103)  "आँखें उसको नहीं देख सकती है बल्कि वह आँखों को देखता है।" 


*क्या ईश्वर कभी मरता भी है?*

कदापि नहीं! क्योंकि जो अजन्मा है उसको मृत्यु कैसे संभव है।  

(ऋग्वेद; 10:48:5)  "अहमिन्द्रो न पराप्जिग्य इद्धनं न मर्त्यवे तस्थे कदाचन।" 

"मई सर्वशक्तिमान ईशर इंद्र हूँ।  मेरी हार कभी भी नहीं होती है और न कभी मौत ही आती है।"

(अथर्व वेद; 10:8:32)  "अन्ति सन्तं न झाती अंति सन्तं न पश्यति।  देवस्य पश्य काव्यं न ममार न जीयीति।।" 

"अपने समीप में मौजूद ईश्वर को मनुष्य कभी भी नहीं छोड़ता है, जबकि वाद उसे देखता नहीं है।  ऐसे ईश्वर की वाणी को देखे, वह न कभी मरता है और न कभी पुराना होता है।" 

(छान्दोग्य उपनिषद्; 1:1:1 ) "ओ३म इत् एतत् अक्षरम् उद्गीयम् उपासीत्।"

"ओम यह अविनाशी कभी न मरने वाला है, इसी प्रकार मुख्यतः महाचर्चा है।  इसलिए इसकी उपासना करो।"

(कठोपनिषद्; 2:3:1) "तदेव शुक्रं तद ब्रह्म तदेव अमृतम् उच्चयते।।"

"वह ही अतिविशुद्ध परब्रह्मपरमेश्वर है, वाही कभी न मरने वाला कहा जाता है।" 

(बृहद्दारकोपनिषद्; 3:7:3) "एष त आत्मा अन्तर्यामी अमृतः।" 

"वह तुम्हारा परमात्मा ईश्वर अन्तर्यामी अमृत है।"

(बृहद्दारकोपनिषद्; 3:8:9)  "एतस्य अक्षरस्य प्रशासनों।"

"यह सारा संसार इस अविनाशी ईश्वर के प्रशासन में है।"

(मुण्डकोपनिषद; 1:1:5)  "अथ परा यया तद् अक्षरम् अधिगम्यते।।"

(बैबल, तिमोती; 1:17) "इसके बाद प्राविधा है जिससे वह अविनाशी कभी न मरने वाला परमेश्वर जाना जाता है।  अब उस सनातन सम्राट, अविनाशी अदृश्य एक मात्र परमेश्वर का आदर और महिमा युग युगांतर होती है।"  आमीन।।

(खुर'आन; 25:58)  "वह सदा-सर्वदा रहने वाली जीवित शाश्वत सत्ता है जो सम्पूर्ण जगत को संभाले हुए है।  भरोसा करो उस जीवित सत्ता पर जो कभी मरने वाला नहीं है।"


*क्या ईश्वर की कोई मूर्ती हो सकती है?*

जो निराकार है उसकी मूर्ति कैसे संभव है? क्यूंकि ईश्वर अलख-निरंजन है।" 

(यजुर्वेद; 32:3, सवेस्तास्वतरोपनिषद् ; 4:19) "न तस्य प्रतिमा अस्थि"

"उसकी कोई प्रतिमा नहीं है।"

(यजुर्वेद; 40:8) "स पर्य्गात् शुक्रम् अकायम् अब्रणम् अस्नाविरं शुद्धम् अपापविद्धम्" 

"वह परमेश्वर अपने ज्ञानरूप से सर्वत्र विधमान, शीघ्रकारी, सर्व शक्तिमान, निराकार अजन्मा, नस-नाड़ी रहित, पवित्र और निष्पाप है।"

(बैबिल, लैव्य; 26:1) "(परमेश्वर को) तुम न कोई पुतला बनाओगे, न कोई मूर्ती बनाओगे।।"

(खुर'आन; 25:58) "शराब, जुआ, मूर्तिपूजा और अपशगुन मानना ये सब गंदे और दुष्टता के काम है इनसे बचो।" 



* ईश्वर का क्या नाम है? *

वेद में - बैबिल में यहोवा - खुर'आन में अल्लाह  ; इस तरह ईश्वर का नाम उल्लेख किया गया है।  जैसे जल, पानी, वाटर, आब और माय आदि शब्द का अर्थ एक ही है उसी तरह , यहोवा, अल्लाह कहने से भी परमेश्वर एक ही है।


(ऋगवेद; 1:164:46) "इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्यः स सुपर्णो गरुत्मान।  एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति अग्निं यमं मातरिशवानमाहु:।"

"एक निराकार अजन्मा ईश्वर को अनन्यभक्त कई गुणवाचक नाम से पुकारते है।"

परमेश्वर को इंद्र, मित्र, वरूण, अग्नि,सूर्य और याम आदि नामों से भी जाना जाता है।  इसे मन्त्र के सन्दर्भ-प्रसंग से निश्चित किया जाता है।  

(बैबिल, निर्गमन; 6:2:3) "तब परमेश्वर ने मूसा से कहा, मैं यहोवा हूँ।  इब्राहीम, इशाक और याकूब मुंशी एल सददायी यानि सर्वशक्तिमान ईश्वर के नाम से जानते थे, मैंने उन्हें नहीं बताया की मेरा नाम यहोवा भी है।"

(खुर'आन; 7:180) "सारे अच्छे नाम अल्लाह परमेश्वर के लिए ही है।  उसको अच्छे ही नामों से पुकारो"

(खुर'आन; 17:110) "हे अंतिमऋषि, इनसे कह दो अल्लाह परमेश्वर कहकर पुकारो, चाहे रहमान महा दयावान कहकर, जिस नाम से भी पुकारो उसके लिए अच्छे ही नाम है।"

।संक्षिप्तः ईश्वर के नाम अनेक है, ईश्वर अनेक नहीं है।  

क्या ईश्वर के सामान कोई है?
(ऋगवेद; 7:32:23) "न त्ववानन्यो दिव्यो न पार्थिवो न जातो न जनिष्यते।।"

"धरती-आकाश में आप के सामान कोई दूसरा नहीं है।  न तो अब तक कोई पैदा हुआ, न भविष्य में कोई पैदा हो सकता है।"

(ऋगवेद; 6:36:4) "पति: बभूयासमो जनानामेको विश्वस्य भुवनस्य राजा।" 

"सारे संसार का राजा महाराजा और लोगों का स्वामी एक और अकेला ही हुआ, जिसके सामान कोई दूसरा हानि है।"

(बैबिल, यह्याह; 40:18) "तुम ईश्वर को किसके सामान बताओगे और उसकी उपमा किस से दोगे?" 

(खुर'आन; 42:11) "उस की तरह कोई चीज़ नहीं है और वह खूब-खूब सुनने और देखने वाला है।"   


सारी सृष्टि का सृष्टिकर्ता ईश्वर - अजन्मा है , अदृश्य है, अविनाश है 

एक और अकेला ही है :- 
उसके न माता है न पिता, न पत्नी है न पुत्र। ईश्वर के नाम अनेक है। ईश्वर अनेक नहीं है।  वह अद्वितीय बेमिसाल है, उस जैसा कोई भी नहीं है।  

मानव और उसके सृष्टिकर्ता के बीच एक अतिपवित्र सम्बन्ध है, जिसे एक ईश्व्रत कहा जाता है।  यदि कोई मनुष्य अपने ईश्वर को छोड़कर किसी दूसरे की पूजा-उपासना करता है, तो वह सम्बन्ध अपवित्र हो जाता है और वह अतिनिकृष्टतम नीच हो जाता है।  

हे मेरे पैदा करने वाले आप बड़े ही दयालु है, इसिलिय सब को छोड़कर एक आपके शरण में आया हूँ।  आप मुंशी सीधा रास्ता दिखा दे और परलोक से 
स्वर्गीय अमरपद एवं मुक्ति-मोक्ष अवश्य ही प्रदान करे।  आमीन 


















3 comments:

  1. Thanks very much sir for giving us such a valuable compilation of the knowledge about the Ishvar(God)....I am sorry for my weak English language.............As I believe and worship Shiva and Shakti as the only Ishvar.In many Purans it has been mentioned that both Shiva and Shakti always remains together and both should be worshipped together....Because without the Shakti it would not have been possible to create the universe.So here Ekeshvarvad of the Vedas do not explain how the universe was created....Some Puranas explain about the creation of the world by the Lord Brahma through their sons. But also for that purpose Female Shakti is necessary...So here the Hinduism concept of worshipping both Shiva and Shakti proves valid....
    As a convertee from the Hinduism you might be familiar that before the birth of the Islam or Christians,both Shiva-Shakti are being worshiped in every Hindu temples as anyone can find both Shiva and Shakti idols in every Hindu Shiva temple..Shiva is worshiped as a Nirakar and in the form of Lingas and the Shakti idols always put in front of the Shiva Lingam....And this concept is older than the birth of Islam or Christians....In every Shakti (Goddess)temple anyone can see the idol of Shakti and idol of Shiva here in the form of Bhairav.....So there are 51 Shakti goddesses temples all over India, Pakistan and Bangladesh and there are 51 Bhairav(Form of Shiva)in every Shakti temples...So in any Hindu temple both Shiva and Shakti are being worshipped together...Here Ekeshvarvad of Vedas or Bible or Quran fails to explain the concept of only one Ishvar as the creator of this Universe...I appreciate you sir for the possessing such a vast knowledge about the Vedas... the treasure of the knowledge.

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  2. True indian factory
    You are doing question on quran....i will tell you that no one change a little bit in quran from its issued from god. And no one can find a little mistake in quran yet..you are doing question on your veda also....here you need to think which king of religion you follow ? Geeta has many versions ..and ramayna also....but if you really want to know about hinduism...you need to understand vedas

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